तालाब का दुख

पुराना तालाब आज रो रहा था l
इतने दिनों से शांत था,
फिर अब क्यों बोल रहा था ll
जाने उसको थी क्या पड़ी,
जो घाव दिल के खोल रहा था l

बोला,"क्यों आए हो, परवाह तो तुमको है नहीं l
किस किस्म के लोग हो तुम?
क्यूँ कोई तुम्हें समझाता नहीं ll"
मैं बोला, "बात क्या है, बता तो दो l
किस चीज से हो खफा, जता तो दो ll

बोला,"गांव में अकाल पड़ा था भारी l
पानी की हुई थी लाचारी ll
लोगों ने की पलायन की तैयारी,तो ठाकुर ने फिर यह बात विचारी l
एक तालाब बनाने की दी जिम्मेदारी l
और काम पर लग गए थे सब नर-नारी ll

कुँई तालाब में तीन बनाई l
पानी फिर भी नहीं दिया दिखाई ll
निराश लोग अब होने लगे थे l
धीरज अपना खोने लगे थे ll
सब्र मेरा फिर टूट गया l
दिल का दरिया फूट गया ll

गांव में खुशी की लहर दौड़ आई l
सबने उस दिन दिवाली मनाई ll
और एक संदेश दिया मेरे भाई l
पानी के लिए ना कोई करे लड़ाई ll

क्या तुम्हें बताऊं मैं बच्चे व्यथा मेरी पुरानी है ll
हो गया हूं अब मैं बूढ़ा अनसुनी मेरी कहानी है l
हूँ मैं मेला सा सरोवर गंदा मेरा पानी है ll"
मेरी है बस यही खता l
किस बात की मिल रही है मुझे सजा?
तो मैंने ऐसा क्या कर दिया?
जो कच्चरे से मेरे को भर दिया ll

मैं बोला,"कर सकता हूं क्या मैं भला l
मैं तो बस एक राही हूँ ll
कलम है हथियार जिसका l
मैं तो वो सिपाही हूँ ll
कुछ तो मेरे मित्र हैं , जो खुद बड़े विचित्र हैं l
गांव की माटी भी है पावन, लोग यहां के पवित्र हैं l
तो फिर कच्चरा किसने डाल दिया, ऐसा किसका चरित्र है?

जो भी हुआ गलत हुआ इंसाफ तुम्हें दिलाऊंगा l
लिखूंगा तुम्हारे दुख की गाथा सबको मैं सुनाऊंगा ll"

तालाब बोला,"है मेरा यह स्वाभिमान l
नहीं चाहिए तुम्हारा अहसान l
कचरा कहीं और डाल दो l
रख लो बस इतना सा ध्यान ll
यही मेरी छोटी सी कहानी, दुख इसी से जान लो l
स्वच्छ सरोवर कहाने कि, मेरी अंतिम इच्छा मान लो l
स्वच्छ सरोवर कहाने कि,मेरी अंतिम इच्छा मान लोll

~ राही  (Sandeep JR Bhati )


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