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बेज़ुबान की आवाज

दे अगर भगवान जुबान इस बेज़ुबान को, पूछेगा वो कुछ सवाल हर एक इंसान को, कि वफ़ादारी निभाने में कसर कोई छोड़ी नहीं, पर उम्मीद तुमसे थी नहीं, कि इस कदर चुकाओगे तुम हमारे अहसान को, कि घर हमारे छीन लिए, पिंजरों में भी कैद किया, जंजीर भी बँधी है पैर से, बताओ हमने क्या जुर्म किया, सुबह से शाम तक हमने तुम्हारा साथ दिया, पर थी क्या दुश्मनी हमसे, जो खाने में बारूद दिया, समझ हम सके नहीं तुम्हारे इस व्यवहार को, खाने को कुछ देते नहीं,  तो  पत्थर क्यों मारते हो लाचार को, अब अपनी असलियत को तुम इंटरनेट से छिपाओगे, दया दिखाने के लिए स्टेटस भी तुम लगाओगे, पर इतिहास तुम्हारा है गवाह, पिछली घटनाओं की तरह इसको भी भूल जाओगे  आधुनिकता के काल में, क्यों खाने से प्रहार किया,  गलती तो बताओ उसकी, क्यों बच्चे सहित मार दिया, नासमझ वो माँ थी जिसने पहचाना नहीं इंसान को, क्यों स्वार्थ में डूबकर बेरहम तुम बनते हो, दे अगर भगवान जुबान इस बेज़ुबान को, पूछेगा वो यही सवाल हर एक इंसान को...                                                                 ~शज़र (Rajat Rajpurohit)

कोरोना में मजदूर

चला वो राही बनकर मंजिल उसकी अपना घर था,  फैली थी महामारी देश में पर वो अब  निडर था  पर ना नाँव थी पास उसके रास्ता एक समुंदर था,  सच कह रहा हूं , हाँ वो घर से इतना दूर था  बिन सावन बारिश के जैसे सरकार से बस ऐसी आस थी,  साधन से पहुंचे घर वो भी पर, वो कीमत ना उसके पास थी याद करता वो दिन राह में, आँगन में बैठाकर खाना खिलाती ज़ब बेटियां थी, थककर बैठता जलती पटरियों पर, खाने को बस सुखी रोटियाँ थी शाम ढली तो कुछ पल के लिए उसे शुकुन मिला, पर संभाले ज़ब पैर उसने, दर्द और कुछ खून मिला दिन भर चला वो और अब भी चलने को मजबूर था, लिखते भी काँप रही है कलम मेरी की वो इस देश का मजदूर था कुछ दूर चला वो पर शरीर  उसका बेसुध हो गया, सोचकर की ना आयी दिनभर में रेल, और पटरियों पर ही सो गया पर कायनात ने थी साजिश रची उसे बस उसके सोने का ही इंतजार था, ना संभल सका वो उससे जो ज़िन्दगी आखिरी वार था चीथड़े सब बिखर गए जो कभी उसकी अमानत थी रूह भी उसकी रो पड़ी देखकर की रोटियाँ अब भी सलामत थी...                                  ~शज़र (Rajat  Rajpurohit)

वो लौट आयी

खामोश राहों पर इंतज़ार अब खत्म हुआ यह हवा आज उसका पैगाम लायी है l दिल की सूखी जमीन पर वो पहली बारिश की तरह फिर लौट आयी हैll तुम्हारी गैरमौजूदगी में बस तुम्हारे खत और तुम्हारी यादों का ही सहारा थाl अक्सर मै पूछता खुद से ही की वो शख्स क्यों दूर चला गया जो कभी हमारा थाll बंद कमरों की चार दीवारी में हर पल तेरा ही नाम गूंजता थाl तन्हाई की चादर लपेटे हुए दीवारों से ही तेरा हाल पूछता थाll अनजान था जिससे तेरी कमी ने मुझे उसी  चाहत से रूबरू कराया हैl हँसना मुनासिफ तो नहीं था पर तेरे जाने के गम को मैंने मेरी हँसी के पीछे छुपाया हैll आजा फिर थामा है हाथ उसने और छोड़ के ना जाने की कसम खायी हैl पर अरसो  बाद वो अँधेरे में रोशनी की तरह आज फिर वो लौट आयी हैll                                         ~ Rajat Rajpurohit

बारिश

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यह बारिश जरूर तेरे शहर से होकर आयी है तभी यह हवाये तेरी महक साथ लायी है बारिश को देखकर तुम दौड़ कर खिड़की पे आयी होंगी ऐसे अचानक बदलते मौसम को देख के तुम्हे मेरी याद भी आयी होंगी और तुम्हे जरूर मेरा स्पर्श महसूस हुआ होगा ज़ब तुमने बारिश की बूंदो को छुआ होगा एक पल के लिए तेरा वो चेहरा आज भी दिखता है जैसे बिजली की रोशनी से पल भर आसमान दिखता है आज इस बारिश ने दिल की राख में फिर आग लगा दी मिट्टी की इस सौंदी खुशबु ने आज फिर तेरी याद दिला दी...                                         ~  Rajat Rajpurohit Image source- Sandeep

एक तरफा इश्क़

कभी कभी सोचता हु की बताऊ उसे की कितनी है मोहब्बत तुमसे, चाहत से रूबरू कराऊं और बताऊ कैसे जुड़े है मेरे जज्बात तुमसे, बताऊ उसे की कैसे स्कूल के गेट पर एक झलक के लिए घंटो इंतज़ार करता था, कैसे तुम्हारी निगाहों से बचता था फिरता था और सामने आने से डरता था कुछ राज बताऊ की कैसे उसे बस में उसकी पसंदीदा सीट खाली मिलती थी और कैसे उसकी खोयी हुयी हर चीज उसे कितनी आसानी से मिलती थी कैसे अचानक उसके सामने आ जाने से मेरी खामोश नज़रे झुक जाती थी, और कैसे वो हर जगह  हर पल मुझे हमेशा अपने आस पास पाती थी कैसे हमेशा उसे अपने जन्मदिन पर हमेशा एक अजनबी तोहफा मिलता था, और कैसे बताऊ उसे की मेरे फ़ोन का लॉक हमेशा उसके नाम से खुलता था कैसे बताऊ उसे की उसकी डांस प्रैक्टिस मैं हमेशा छुप के देखता था और कैसे गुलज़ार की लाइने चुराकर तुम्हारे लिए कविताए लिखता था और कैसे बताऊ तुझे की मेरी इन नज़रों को तुम्हारे दीदार की कितनी फिक्र है, और पढ़ाऊ तुम्हे वो हर एक कविता जिसकी हर लाइन में मेरे एक तरफा प्यार का जिक्र है                                  ~  Rajat Rajpurohit

तेरी याद

वो राहे जो शहर से दूर उस सुनसान सड़क पर जाती है... आज भी इन सड़को की खामोशी तेरी याद दिलाती है... वही सड़क पर पेड़ के नीचे तेरा झुमका क्या पुराना मिल गया... आज अरसो बाद मेरे कलम को फिर से लिखने का बहाना मिल गया... वो काली सड़को पे हमारी मुलाकातों के सफ़ेद निशान आज भी है... भले ही तोड़ा हो दिल तुमने पर इस टूटे दिल में तेरी चाहत आज भी है... इस तरह समाये हो मुझमें की मेरी कलम की स्याही की आखिरी बूंद के जिक्र में तुम हो... ओस की बूंदो में डूबी काफ़ी लम्बी है यह रात पर, इस रात की सुबह तुम हो...                                                 ~  Rajat Rajpurohit   

ऐ ज़िन्दगी

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अपनों ने ही अहसानो तले दबाया है... ऐ ज़िन्दगी आज फिर तूने रुलाया है... इन आँसुओ को हमने हर शख्स से छुपाया है... दुश्मन के रूप में हमने ज़िन्दगी को पाया है... दुश्मनी का बदला भी इसने इस कदर लिया है... मरहम लगे ज़ख्म पर इसने फिर ज़ख्म दिया है... मुझसे जीत मेरी छीनकर इसने मुझे हराया है... ऐ ज़िन्दगी आज फिर तूने रुलाया है... गलतफहमी है तेरी तुझसे हारकर बिखर जाऊँगा मैं... इंतजार करना तुझसे लड़ने फिर आऊगा मैं... हैं काँटों से भरा तेरा सफर पर इसे पूरा जरूर कर लेंगे... याद रखना ऐ ज़िन्दगी इन आंसूओ का बदला हम हंसकर लेंगे...                                         ~  Rajat Rajpurohit Video Source- YouTube    "The last page of notebook"

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