कुमार विश्वास की कविताएं
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1.कुछ छोटे सपनो के बदले / कुमार विश्वास
कुछ छोटे सपनो के बदले,
बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे !
वही प्यास के अनगढ़ मोती,
वही धूप की सुर्ख कहानी,
वही आंख में घुटकर मरती,
आंसू की खुद्दार जवानी,
हर मोहरे की मूक विवशता,चौसर के खाने क्या जाने
हार जीत तय करती है वे, आज कौन से घर ठहरेंगे
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे !
कुछ पलकों में बंद चांदनी,
कुछ होठों में कैद तराने,
मंजिल के गुमनाम भरोसे,
सपनो के लाचार बहाने,
जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे,
उन के भी दुर्दम्य इरादे, वीणा के स्वर पर ठहरेंगे
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे
2.जिसकी धुन पर दुनिया नाचे / कुमार विश्वास
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है.
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है.
जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उम्र मगर ,
बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है .
पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना ?
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना ?
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं,
जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना ?
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तनचंदन,
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन.
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ,
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ,
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन,
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेड़े सह नहीं पाया,
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया,
अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा,
कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया
3.पवन ने कहा / कुमार विश्वास
पवन ने कहा
सौंप दो मुझे
अपना सब सत्व
तमस व रजत
चाहती हूँ मैं
स्वयं से जोड़ना
तुमको
यही होगी गति उत्तम
शब्द सार्थक
नियति उत्तम
किन्तु मुझे करना
क्षमा तुम
मैं रहूंगी – वहीं
अपने चन्दन वन में
बहूँगी वहीं
तुम्हारी धरती पर
आ नहीं सकती
अभी मैं
कभी मैं
किन्तु फिर भी
मैं सदा उत्सुक हूँ
तुमसे सहज
व्यापार हेतु
प्यार हेतु
4.महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है / कुमार विश्वास
महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है
खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है
उनकी आँखों से होकर दिल तक जाना
रस्ते में ये मैखाना तो पडता है
तुमको पाने की चाहत में ख़तम हुए
इश्क में इतना जुरमाना तो पड़ता है
5.मौसम के गाँव / कुमार विश्वास
बहुत देर से
सोकर जागी
दिशा-वधू मौसम के गाँव
अतः डरी
लज्जित-सी पहुँची
छूने दिवस-पिया के पाँव!
आँखों वाली
क्षितिज-रेख पर
काला-सूरज उदित हुआ
धरती का कर
निज दुहिता के
पाँव परस कर मुदित हुआ
कम्पित शब्द-गोट ने
सहसा चला
एक ध्वनिवाही दाँव!
बहुत देर से
सोकर जागी
दिशा-वधू मौसम के गाँव
मौन-शीत पसरा
घर-आँगन की
गतिविधियाँ सिमट गईं,
किरणों की दासियाँ
कुहासे के
अनुचा से लिपट गईं
दृष्टि अराजक हुई
छा गयी
नभ से आपदकाली छाँव!
बहुत देर से
सोकर जागी
दिशा-वधू मौसम के गाँव
6.विदा लाडो / कुमार विश्वास
विदा लाडो!
तुम्हे कभी देखा नहीं गुड़िया,
तुमसे कभी मिला नहीं लाडो!
मेरी अपनी दुनिया की अनोखी उलझनों में
और तुम्हारी ख़ुद की थपकियों से गढ़ रही
तुम्हारी अपनी दुनिया की
छोटी-छोटी सी घटत-बढ़त में,
कभी वक़्त लाया ही नहीं हमें आमने-सामने।
फिर ये क्या है कि नामर्द हथेलियों में पिसीं
तुम्हारी घुटी-घटी चीख़ें, मेरी थकी नींदों में
हाहाकार मचाकर मुझे सोने नहीं देतीं?
फिर ये क्या है कि तुम्हारा ‘मैं जीना चाहतीं हूँ माँ‘ का
अनसुना विहाग मेरे अन्दर के पिता को धिक्कारता रहता है?
तुमसे माफी नहीं माँगता चिरैया!
बस, हो सके तो अगले जनम
मेरी बिटिया बन कर मेरे आँगन में हुलसना बच्चे!
विधाता से छीन कर अपना सारा पुरुषार्थ लगा दूंगा
तुम्हें भरोसा दिलाने में कि
‘मर्द‘ होने से पहले ‘इंसान‘ होता है असली ‘पुरुष‘!
7.होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो / कुमार विश्वास
दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे जन्नत ना अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में
जीते-जी इसका मान रखें
मर कर मर्यादा याद रहे
हम रहें कभी ना रहें मगर
इसकी सज-धज आबाद रहे
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
गीता का ज्ञान सुने ना सुनें, इस धरती का यशगान सुनें
हम सबद-कीर्तन सुन ना सकें भारत मां का जयगान सुनें
परवरदिगार,मैं तेरे द्वार
पर ले पुकार ये आया हूं
चाहे अज़ान ना सुनें कान
पर जय-जय हिन्दुस्तान सुनें
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
8.माँ / कुमार विश्वास
माँ
पालती है
पेड़ एक
लाड़ से
प्यार से
दुलार से।
माँ सुलाती है
लोरी गा
पिलाती है दूध
लुटाती है
तन मन प्राण
पेड़
होता बड़ा ज्यों-ज्यों
जड़ें
उसकी मजबूत
घुस जाती हैं
माँ में
हाथ पैर में
दिमाग में
और दिल में
चूसता है
ख़ून-पानी-माँस
महँगे आँसू
पेड़ पाता
विस्तार अद्भुत
देखता संसार
रूककर राह में
कितना बड़ा है पेड़
कितना लम्बा है पेड़
पेड़ बढ़ता
निस दिन
माँ से धँसी
जड़ों से
दूर होता
निस दिन!
9.साल मुबारक / कुमार विश्वास
उम्र बाँटने वाले उस ठरकी बूढ़े ने
दिन लपेट कर भेज दिए हैं
नए कैलेंडर की चादर में
इनमें कुछ तो ऐसे होंगे
जो हम दोनों के साझे हों।
सब से पहले
उन्हें छाँट कर गिन तो लूँ मैं!
तब बोलूँगा
‘साल मुबारक‘
वरना अपना पहले जैसा
हाल मुबारक
10.तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा / कुमार विश्वास
ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही!
ओ अमलताश की अमलकली!
धरती के आतप से जलते...
मन पर छाई निर्मल बदली...
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
तुम कल्पव्रक्ष का फूल और
मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य
मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी गजल शुभे
तुम शाम गान सी पावन हो
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी
बिजुरी सी तुम मनभावन हो.
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
तुम जिस शय्या पर शयन करो
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौलश्री
वह आँगन क्या वृन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ
वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
मै तुमको चाँद सितारों का
सौंपू उपहार भला कैसे
मैं यायावर बंजारा साधू
सुर श्रृंगार भला कैसे
मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ
दो पल प्यार भला कैसे
इसलिये विवश हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
11.बाँसुरी चली आओ / कुमार विश्वास
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
12.रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है / कुमार विश्वास
रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है
जीना मरना खोना पाना चलता रहता है
सुख दुख वाली चादर घटती वढती रहती है
मौला तेरा ताना वाना चलता रहता है
इश्क करो तो जीते जी मर जाना पड़ता है
मर कर भी लेकिन जुर्माना चलता रहता है
जिन नजरों ने काम दिलाया गजलें कहने का
आज तलक उनको नजराना चलता रहता है
13.प्रीतो! / कुमार विश्वास
तुम
समझ तो रही हो न, प्रीतो!
वे सब बातें
जो मैं
इस सूने कमरे की
दीवारों को
समझा रहा हूँ
आधी रात से
तुम
गुनगुना तो रही हो न, प्रीतो!
वे सब गीत
जो मैं
तिल-तिल कर
मरते हुए
रच रहा हूँ
तुम
देख तो रही हो न, प्रीतो!
वे सब पाप
जो मैं
तुम्हारी पवित्रता से
डरते हुए
कर रहा हूँ
ओ मेरी
एकमात्र श्रोता!
देखता हूँ
तुम कब तक नहीं रोतीं
14.रंग दुनिया ने दिखाया है / कुमार विश्वास
रंग दुनिया ने दिखाया है निराला, देखूँ
है अँधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ
आइना रख दे मेरे हाथ में, आख़िर मैं भी
कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ
जिसके आँगन से खुले थे मेरे सारे रस्ते
उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ
15.हो काल गति से परे चिरंतन / कुमार विश्वास
हो काल गति से परे चिरंतन,
अभी यहाँ थे अभी यही हो।
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।
तुम्हारी राधा को भान है तुम,
सकल चराचर में हो समाये।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।
न द्वारका में मिलें बिराजे,
बिरज की गलियों में भी नहीं हो।
न योगियों के हो ध्यान में तुम,
अहम जड़े ज्ञान में नहीं हो।
तुम्हें ये जग ढूँढता है मोहन,
मगर इसे ये खबर नहीं है।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
अगर कहीं हो तो तुम यही हो।
16.दुःखी मत हो / कुमार विश्वास
सार्त्र!
तुम्हें आदमी के
अस्तित्व की चिंता है न?
दुःखी मत हो दार्शनिक
मैं तुम्हें सुझाता हूँ
क्षणों को
पूरे आत्मबोध के साथ
जीते हुए
आदमज़ाद की
सही तस्वीर दिखाता हूँ-
भागती ट्रामों
दौड़ती कारों
और हाँफती ज़िन्दगी के किनारे
वहाँ दूर
नगर निगम के पार्क में –
प्राणवान अँगुलियों के सहारे
बेमतलब घास चुनते
अपने मौन से
अनन्त सर्गों का
संवेदनशील महाकाव्य बुनते
यदि दो युवा प्रेमियों को
तुम कभी देख पाओगे
तो उसी दिन से
ओ चिन्तक!
महायुद्धों की
विभीषिका को भूलकर
तुम सचमुच
आदमज़ाद के
समग्र अस्तित्व की
महत्ता पहचान जाओगे
17.उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती / कुमार विश्वास
उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती
हमको ही ख़ासकर नहीं मिलती
शायरी को नज़र नहीं मिलती
मुझको तू ही अगर नहीं मिलती
रूह में, दिल में, जिस्म में दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नहीं मिलती
लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जहाँ हूँ उधर नहीं मिलती
18.तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है / कुमार विश्वास
तुम्हें जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है
ज़हर-सूली ने गाली-गोलियों ने
हमारी जात पहचानी बहुत है
कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे
तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है
इरादा कर लिया गर ख़ुदकुशी का
तो खुद की आखँ का पानी बहुत है
तुम्हारे दिल की मनमानी मेरी जाँ
हमारे दिल ने भी मानी बहुत है
19.सफ़ाई मत देना / कुमार विश्वास
एक शर्त पर मुझे निमन्त्रण है मधुरे स्वीकार
सफ़ाई मत देना!
अगर करो झूठा ही चाहे, करना दो पल प्यार
सफ़ाई मत देना
अगर दिलाऊँ याद पुरानी कोई मीठी बात
दोष मेरा होगा
अगर बताऊँ कैसे झेला प्राणों पर आघात
दोष मेरा होगा
मैं ख़ुद पर क़ाबू पाऊंगा, तुम करना अधिकार
सफ़ाई मत देना
है आवश्यक वस्तु स्वास्थ्य -यह भी मुझको स्वीकार
मगर मजबूरी है
प्रतिभा के यूँ क्षरण हेतु भी मैं ही ज़िम्मेदार
मगर मजबूरी है
तुम फिर कोई बहाना झूठा कर लेना तैयार
सफ़ाई मत देना
20.खुद को आसान कर रही हो ना / कुमार विश्वास
खुद को आसान कर रही हो ना
हम पे एहसान कर रही हो ना
ज़िन्दगी हसरतों की मय्यत है
फिर भी अरमान कर रही हो ना
नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें
कितना नुक्सान कर रही हो ना
हम ने समझा है प्यार, पर तुम तो
जान-पहचान कर रही हो ना
21 .नेह के सन्दर्भ बौने हो गए / कुमार विश्वास
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
शक्ति के संकल्प बोझिल हो गये होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे चरण मेरी कामनायें हैं,
हर तरफ है भीड़ ध्वनियाँ और चेहरे हैं अनेकों,
तुम अकेले भी नहीं हो, मैं अकेला भी नहीं हूँ
योजनों चल कर सहस्रों मार्ग आतंकित किये पर,
जिस जगह बिछुड़े अभी तक, तुम वहीं हों मैं वहीं हूँ
गीत के स्वर-नाद थक कर सो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे कंठ मेरी वेदनाएँ हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
यह धरा कितनी बड़ी है एक तुम क्या एक मैं क्या?
दृष्टि का विस्तार है यह अश्रु जो गिरने चला है,
राम से सीता अलग हैं,कृष्ण से राधा अलग हैं,
नियति का हर न्याय सच्चा, हर कलेवर में कला है,
वासना के प्रेत पागल हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हरे माथ मेरी वर्जनाएँ हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
चल रहे हैं हम पता क्या कब कहाँ कैसे मिलेंगे?
मार्ग का हर पग हमारी वास्तविकता बोलता है,
गति-नियति दोनों पता हैं उस दीवाने के हृदय को,
जो नयन में नीर लेकर पीर गाता डोलता है,
मानसी-मृग मरूथलों में खो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी योजनायें हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं!
22.जब भी मुँह ढक लेता हूँ / कुमार विश्वास
जब भी मुँह ढक लेता हूँ
तेरे जुल्फों के छाँव में
कितने गीत उतर आते है
मेरे मन के गाँव में
एक गीत पलकों पर लिखना
एक गीत होंठो पर लिखना
यानि सारी गीत हृदय की
मीठी-सी चोटों पर लिखना
जैसे चुभ जाता है कोई काँटा नँगे पाँव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में
पलकें बंद हुई तो जैसे
धरती के उन्माद सो गये
पलकें अगर उठी तो जैसे
बिन बोले संवाद हो गये
जैसे धूप, चुनरिया ओढ़, आ बैठी हो छाँव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में
23.फिर बसंत आना है / कुमार विश्वास
तूफ़ानी लहरें हों
अम्बर के पहरे हों
पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों
सागर के माँझी मत मन को तू हारना
जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है
राजवंश रूठे तो
राजमुकुट टूटे तो
सीतापति-राघव से राजमहल छूटे तो
आशा मत हार, पार सागर के एक बार
पत्थर में प्राण फूँक, सेतु फिर बनाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है
घर भर चाहे छोड़े
सूरज भी मुँह मोड़े
विदुर रहे मौन, छिने राज्य, स्वर्णरथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे
पंचतत्व सौ पर है भारी, बतलाना है
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है
पतझर का मतलब है, फिर बसंत आना है
24.जाने कौन नगर ठहरेंगे / कुमार विश्वास
कुछ छोटे सपनों की ख़ातिर
बड़ी नींद का सौदा करने
निकल पड़े हैं पाँव अभागे
जाने कौन नगर ठहरेंगे
वही प्यास के अनगढ़ मोती
वही धूप की सुर्ख़ कहानी
वही ऑंख में घुट कर मरती
ऑंसू की ख़ुद्दार जवानी
हर मोहरे की मूक विवशता
चौसर के खाने क्या जानें
हार-जीत ये तय करती है
आज कौन-से घर ठहरेंगे
कुछ पलकों में बंद चांदनी
कुछ होठों में क़ैद तराने
मंज़िल के गुमनाम भरोसे
सपनों के लाचार बहाने
जिनकी ज़िद के आगे सूरज
मोरपंख से छाया मांगे
उनके ही दुर्गम्य इरादे
वीणा के स्वर पर ठहरेंगे
25.बात करनी है, बात कौन करे / कुमार विश्वास
बात करनी है, बात कौन करे
दर्द से दो-दो हाथ कौन करे
हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं
चाँद ना हो तो रात कौन करे
हम तुझे रब कहें या बुत समझें
इश्क में जात-पात कौन करे
जिंदगी भर कि कमाई तुम थे
इस से ज्यादा ज़कात कौन करे
26.मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक / कुमार विश्वास
मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज़ जाता रहा, रोज़ आता रहा
तुम ग़ज़ल बन गईं, गीत में ढल गईं
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा
ज़िन्दगी के सभी रास्ते एक थे
सबकी मंज़िल तुम्हारे चयन तक रही
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर प्रीति की अल्पना
तुम मिटाती रहीं मैं बनाता रहा
एक ख़ामोश हलचल बनी ज़िन्दगी
गहरा ठहरा हुआ जल बनी ज़िन्दगी
तुम बिना जैसे महलों मे बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी ज़िन्दगी
दृष्टि आकाश में आस का इक दीया
तुम बुझाती रहीं, मैं जलाता रहा
तुम चली तो गईं, मन अकेला हुआ
सारी यादों का पुरज़ोर मेला हुआ
जब भी लौटीं नई ख़ुश्बुओं में सजीं
मन भी बेला हुआ, तन भी बेला हुआ
ख़ुद के आघात पर, व्यर्थ की बात पर
रूठतीं तुम रहीं मैं मनाता रहा
27.प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये / कुमार विश्वास
प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए,
ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाए,
घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले,
अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले,
लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाए,
भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाए,
सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में,
नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे,
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...
लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं,
कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं,
वो लड़ाई को भले आर पार ले जाएँ,
लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ,
जिसकी चौखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी
उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ
हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब
हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे
अँधेरे वक्त में भी गीत गाए जायेंगे...
28.हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें / कुमार विश्वास
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर माँ ने
जिस पल सखियों ने सौंपी होंगीं सौगातें
ढोलक की थापों में, घुँघरू की रुनझुन में
घुल कर फैली होंगीं घर में प्यारी बातें
उस पल मीठी-सी धुन
घर के आँगन में सुन
रोये मन-चैसर पर हार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
कल तक जो हमको-तुमको मिलवा देती थीं
उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा
साजन की अंजुरि पर, अंजुरि काँपी होगी
मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा
उस पल सोचा मन में
आगे अब जीवन में
जी लेंगे हँसकर, बिसार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
कल तक मेरे जिन गीतों को तुम अपना कहती थीं
अख़बारों मे पढ़कर कैसा लगता होगा
सावन को रातों में, साजन की बाँहों में
तन तो सोता होगा पर मन जगता होगा
उस पल के जीने में
आँसू पी लेने में
मरते हैं, मन ही मन, मार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
हार गया तन-मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें
29.मेरे सपनों के भाग में / कुमार विश्वास
कि जैसे दुनिया देखने की
ज़िद के सही साँझ
न होने पर पूरा,
सो जाए मचल-मचल कर,
रोता हुआ बच्चा!
तो तैर आती हैं
उस के सपनों में,
वही चमकीली छवियाँ
जिन के लिए लड़ कर,
हार-थक गया था,
पत्थर-दुनिया से जाग में!
ऐसे उतर आती हो तुम
रात-रात भर
मेरे सपनों के भाग में!
30.ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह / कुमार विश्वास
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
ढेर सी चमक-चहक चेहरे पे लटकाए हुए
हंसी को बेचकर बेमोल वक़्त के हाथों
शाम तक उन ही थक़ानो में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
ये इतने पाँव सड़क को सलाम करते हैं
हरारतों को अपनी बक़ाया नींद पिला
उसी उदास और पीली सी रौशनी में लिपट
रात तक उन ही मकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
शाम तक उन ही थकानां में लौटने के लिए!
ये इतने लोग, कि जिनमे कभी मैं शामिल था
ये सारे लोग जो सिमटे तो शहर बनता है
शहर का दरिया क्यों सुबह से फूट पड़ता है
रात की सर्द चट्टानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
शाम तक उन ही थकानों में लौटने के लिए!
ये इतने लोग क्या इनमें वो लोग शामिल हैं
जो कभी मेरी तरह प्यार जी गए होंगे?
या इनमें कोई नहीं जि़न्दा सिर्फ़ लाशें हैं
ये भी क्या जि़न्दगी का ज़हर पी गए होंगे?
ये सारे लोग निकलते हैं घर से, इन सबको
इतना मालूम है, जाना है, लौट आना है
ये सारे लोग भले लगते हों मशीनों से
मगर इन जि़न्दा मशीनों का इक ठिकाना है
मुझे तो इतना भी मालूम नहीं जाना है कहाँ?
मैंने पूछा नहीं था, तूने बताया था कहाँ?
ख़ुद में सिमटा हुआ, ठिठका सा खड़ा हूँ ऐसे
मुझपे हँसता है मेरा वक़्त, तेरे दोनों जहाँ
जो तेरे इश्क़ में सीखे हैं रतजगे मैंने
उन्हीं की गूँज पूरी रात आती रहती है
सुबह जब जगता है अम्बर तो रौशनी की परी
मेरी पलकों पे अंगारे बिछाती रहती है
मैं इस शहर में सबसे जुदा, तुझ से, ख़ुद से
सुबह और शाम को इकसार करता रहता हूँ
मौत की फ़ाहशा औरत से मिला कर आँखें
सुबह से जि़न्दगी पर वार करता रहता हूँ
मैं कितना ख़ुश था चमकती हुई दुनिया में मेरी
मगर तू छोड़ गया हाथ मेरा मेले में
इतनी भटकन है मेरी सोच के परिंदों में
मैं ख़ुद से मिलता नहीं भीड़ में, अकेले में
जब तलक जिस्म ये मिट्टी न हो फिर से, तब तक
मुझे तो कोई भी मंजि़ल नज़र नहीं आती
ये दिन और रात की साजि़श है, वगरना मेरी
कभी भी शब नहीं ढलती, सहर नहीं आती
तभी तो रोज़ यही सोचता रहता हूँ मैं
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह
31.देवदास मत होना / कुमार विश्वास
खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना
इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना
देखना, चाहना, फिर माँगना, या खो देना
ये सारे खेल हैं, इनमें उदास मत होना
जो भी तुम चाहो, फ़क़त चाहने से मिल जाए
ख़ास तो होना, पर इतने भी ख़ास मत होना
किसी से मिल के नमक आदतों में घुल जाए
वस्ल को दौड़ती दरिया की प्यास मत होना
मेरा वजूद फिर एक बार बिखर जाएगा
ज़रा सुकून से हूँ, आस-पास मत होना
32.तुम्हारा फ़ोन आया है / कुमार विश्वास
अजब सी ऊब शामिल हो गयी है रोज़ जीने में
पलों को दिन में, दिन को काट कर जीना महीने में
महज मायूसियाँ जगती हैं अब कैसी भी आहट पर
हज़ारों उलझनों के घोंसले लटके हैं चैखट पर
अचानक सब की सब ये चुप्पियाँ इक साथ पिघली हैं
उम्मीदें सब सिमट कर हाथ बन जाने को मचली हैं
मेरे कमरे के सन्नाटे ने अंगड़ाई सी तोड़ी है
मेरी ख़ामोशियों ने एक नग़मा गुनगुनाया है
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है
सती का चैतरा दिख जाए जैसे रूप-बाड़ी में
कि जैसे छठ के मौके पर जगह मिल जाए गाड़ी में
मेरी आवाज़ से जागे तुम्हारे बाम-ओ-दर जैसे
ये नामुमकिन सी हसरत है, ख़्याली है, मगर जैसे
बड़ी नाकामियों के बाद हिम्मत की लहर जैसे
बड़ी बेचैनियों के बाद राहत का पहर जैसे
बड़ी ग़ुमनामियों के बाद शोहरत की मेहर जैसे
सुबह और शाम को साधे हुए इक दोपहर जैसे
बड़े उन्वान को बाँधे हुए छोटी बहर जैसे
नई दुल्हन के शरमाते हुए शाम-ओ-सहर जैसे
हथेली पर रची मेहँदी अचानक मुस्कुराई है
मेरी आँखों में आँसू का सितारा जगमगाया है
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है
33.मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊँगा
जागती रहना, तुझे तुझसे चुरा ले जाऊँगा
हो के क़दमों पर निछावर फूल ने बुत से कहा
ख़ाक में मिल कर भी मैं ख़ुश्बू बचा ले जाऊँगा
कौन-सी शै तुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक
ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा
क़ोशिशें मुझको मिटाने की मुबारक़ हों मगर
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊँगा
शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त-दुश्मन हो गए
सब यहीं रह जाएंगी मैं साथ क्या ले जाऊँगामैं तो झोंका हूँ
34.भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा (कविता) / कुमार विश्वास
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा
कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा
जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
ये जज्बातों, मुलाकातों हंसी रातों का हंगामा
जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब
ये हंगामे की रातें हैं या है रातों का हंगामा
कलम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा
नही मुझ पर भी जो खुद की खबर वो है जमाने पर
मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा
इबारत से गुनाहों तक की मंजिल में है हंगामा
ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हंगामा
कभी बचपन, जवानी और बुढापे में है हंगामा
जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हंगामा
हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा
जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे
हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा
35.सब तमन्नाएँ हों पूरी / कुमार विश्वास
सब तमन्नाएँ हों पूरी / कुमार विश्वास
कुमार विश्वास » कोई दीवाना कहता है »
सब तमन्नाएँ हों पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे
चाहता वो है, मुहब्बत में नुमाइश भी रहे
आसमाँ चूमे मेरे पँख तेरी रहमत से
और किसी पेड की डाली पर रिहाइश भी रहे
उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद
उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश भी रहे
मुझको मालूम है मेरा है वो मै उसका हूँ
उसकी चाहत है की रस्मों की ये बंदिश भी रहे
मौसमों में रहे 'विश्वास' के कुछ ऐसे रिश्ते
कुछ अदावत भी रहे थोडी नवाज़िश भी रहे
36. बाँसुरी चली आओ / कुमार विश्वास
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
37.है नमन उनको / कुमार विश्वास
है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
है नमन उस देहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय ....
हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाऒं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं
कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो »
38.मुक्तक / कुमार विश्वास
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन||1||
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है.
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है||2||
जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है ,
जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है ,
कतरा कतरा सागर तक तो,जाती है हर उमर मगर ,
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है||3||
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नहीं पायी कभी मैं कह नहीं पाया||4||
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ||5||
पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश में है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या||6||
समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता||7||
पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है,
अँधेरा किसको को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है,
हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है,
मोहब्बत में नुमाइश को अदाएं तू समझता है||8||
गिरेबां चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है,
हर एक पल मुस्काराकर अश्क पीना और मुश्किल है
हमारी बदनसीबी ने हमें इतना सिखाया है,
किसी के इश्क में मरने से जीना और मुश्किल है||9||
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हें बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब अभी तक गा रहा हूँ मैं
फिराके यार में कैसे जिया जाये बिना तड़पे
जो मैं खुद ही नहीं समझा वही समझा रहा हूँ मैं||10||
किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है||11||
39.पिता की याद / कुमार विश्वास
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
फिर पिता की याद आई है मुझे
नीम सी यादें ह्रदय में चुप समेटे
चारपाई डाल आँगन बीच लेटे
सोचते हैं हित सदा उनके घरों का
दूर है जो एक बेटी चार बेटे
फिर कोई रख हाथ काँधे पर
कहीं यह पूछता है-
"क्यूँ अकेला हूँ भरी इस भीड मे"
मै रो पडा हूँ
फिर पिता की याद आई है मुझे
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
40.मेरे पहले प्यार / कुमार विश्वास
ओ प्रीत भरे संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तू याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस-नस के पहले ज्वार!
मुझे तू याद न आया कर।
पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसु मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मै अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार
मुझे तू याद न आया कर।
मूझे पता चला मधुरे तू भी पागल बन रोती है,
जो पीङा मेरे अंतर में तेरे दिल में भी होती है
लेकिन इन बातों से किंचिंत भी अपना धैर्य नहीं खोना
मेरे मन की सीपी में अब तक तेरे मन का मोती है,
ओ सहज सरल पलकों वाले!
ओ कुंचित घन अलकों वाले!
हँसते गाते स्वीकार
मुझे तू याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार
मुझे तू याद न आया कर
41. ये वही पुरानी राहें हैं / कुमार विश्वास
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपन सुहाने हैं
ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं
कुछ तुम भूली कुछ मैं भूला मंज़िल फिर से आसान हुई
हम मिले अचानक जैसे फिर पहली पहली पहचान हुई
आँखों ने पुनः पढी आँखें, न शिकवे हैं न ताने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपन सुहाने हैं
तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार
जुड़ गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार
फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
आओ हम दोनों की सांसों का एक वही आधार रहे
सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे
बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
42.आना तुम / कुमार विश्वास
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
तन-मन की धरती पर
झर-झर-झर-झर-झरना
साँसों मे प्रश्नों का आकुल आकाश लिये
तुमको पथ में कुछ मर्यादाएँ रोकेंगी
जानी-अनजानी सौ बाधाएँ रोकेंगी
लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी
पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी
सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन
मेरे तट आना
एक भीगा उल्लास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
जब तुम आओगी तो घर आँगन नाचेगा
अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा
माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी
बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी
कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल, अरूणिम-अरुणिम
पायल की ध्वनियों में
गुंजित मधुमास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
43.मै तुम्हे अधिकार दूँगा / कुमार विश्वास
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा
मैं अपरिमित प्यार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का
कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
ईश को देती चुनौती,
वारती शत-स्वर्ण मोती
अर्चना की शुभ्र ज्योति
मैं तुम्हीं पर वार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
तुम कि ज्यों भागीरथी जल
सार जीवन का कोई पल
क्षीर सागर का कमल दल
क्या अनघ उपहार दूँगा
मै तुम्हें अधिकार दूँगा
44.उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती / कुमार विश्वास
उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती
हमको ही खासकर नही मिलती
शायरी को नज़र नही मिलती
मुझको तू ही अगर नही मिलती
रूह मे, दिल में, जिस्म में, दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नही मिलती
लोग कहते हैं रुह बिकती है
मै जिधर हूँ उधर नही मिलती
45.मै तुम्हे ढूंढने / कुमार विश्वास
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना
तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी
गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी
दृष्टि आकाश में आस का एक दिया
तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
तुम चली गई तो मन अकेला हुआ
सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ
कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी
मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ
खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर
रूठती तुम रही मैं मानता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
46.सूरज पर प्रतिबंध अनेकों / कुमार विश्वास
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों
और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
हमने जीवन की चौसर पर
दाँव लगाए आँसू वाले
कुछ लोगों ने हर पल, हर दिन
मौके देखे बदले पाले
हम शंकित सच पा अपने,
वे मुग्ध स्वयं की घातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
हम तक आकर लौट गई हैं
मौसम की बेशर्म कृपाएँ
हमने सेहरे के संग बाँधी
अपनी सब मासूम खताएँ
हमने कभी न रखा स्वयं को
अवसर के अनुपातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
47.मै कवि हूँ / कुमार विश्वास
होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी
हर विवश आँख के आँसू को
यूँ ही हँस हँस पीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा
मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाओं की
हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाओं की
दे प्राण देह का मोह छुड़ाओं वाली हाड़ा रानी की
मीराओं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की
मुझको ही कथा सँजोनी है,
मुझको ही व्यथा पिरोनी है
स्मृतियाँ घाव भले ही दें
मुझको उनको सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा
जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ
या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ
देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते
या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते
इन द्रौपदियों के चीरों से
हर क्रौंच-वधिक के तीरों से
सारा जग बच जाएगा पर
छलनी मेरा सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा
कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले
पीड़ाओं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले
सरिताओं की मन्थर गति मे मैंने आशा का गीत सुना
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना
पीड़ा की इस मधुशाला में
आँसू की खारी हाला में
तन-मन जो आज डुबो देगा
वह ही युग का मीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा
48.बादडियो गगरिया भर दे / कुमार विश्वास
बादडियो गगरिया भर दे / कुमार विश्वास
कुमार विश्वास » कोई दीवाना कहता है »
बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तो तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
अंबर से अमृत बरसे
तू बैठ महल मे तरसे
प्यासा ही मर जाएगा
बाहर तो आजा घर से
इस बार समन्दर अपना
बूँदों के हवाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
सबकी अरदास पता है
रब को सब खास पता है
जो पानी में घुल जाए
बस उसको प्यास पता है
बूँदों की लड़ी बिखरा दे
आँगन मे उजाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
49.अमावस की काली रातों में / कुमार विश्वास
मावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते में घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
50 .तुम अगर नहीं आयीं / कुमार विश्वास
तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा|
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|
तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है|
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|
दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है?
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है|
औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|
तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने|
रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|
कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है|
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|