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तू चमकता सूरज है

तू चमकता सूरज है, मैं एक ओझल तारा हूं। दर्शन तेरे करने को, मैं फिरता मारा-मारा हूं। तू नदी मदमस्त इठलाती सी, मैं एक शांत किनारा हूं. उफान लहरों का देख तेरी, मैं डूब-डूब सा जाता हूं। तू चमकता सूरज है, मैं एक ओझल तारा हूं। दर्शन तेरे करने को, मैं फिरता मारा-मारा हूं। हुयी सुबह नवेली आज फिर, जगनुओं की रात मैं. तू पूर्णिमा का चांद है। continue.... 2020 lockdown महेंद्र सिंह भाटी, नेवरा

मै प्राईवेट नौकरी वाला हूँ

मै प्राईवेट नौकरी वाला  हूँ ( Sharukh Khan )  मै प्राईवेट नौकरी वाला  हूँ।  बड़ी मेहनत के बाद मैंने प्राईवेट नौकरी पायी है,

दुष्यंत कुमार की प्रसिद्ध कविताएं

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कुमार विश्वास की कविताएं

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अमावस की काली रातों में / कुमार विश्वास

  कुमार विश्वास मावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है, जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,

तुम अगर नहीं आयीं / कुमार विश्वास

                                                    तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा| साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|

बाँसुरी चली आओ / कुमार विश्वास

                                                   तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है रात की उदासी को याद संग खेला है कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है 

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा / कुमार विश्वास

                                         भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा

कोई दीवाना कहता है / कुमार विश्वास

                                           कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!

"मैं आपका गुनहगार हूं"

एक कविता 🙏विष्णुदत्त विश्नोई जी 🙏 के लिए "मैं आपका गुनहगार हूं" राजनीति के आगे मैं लाचार हूं.. भ्रष्टाचार से मरते युग में, मैं दाधीच का कंकाल हूं.. बेसुरे संगीत में, मैं सुरीली ताल हूं .. भूख से मरते शेर की तरह मैं बेहाल हूं.. मैं पत्थरों में खोया एक लाल हूं .. हां, मैं अब मरने के लिए तैयार हूं.. मैं राजनीति के आगे लाचार हूं.. मैं आपका गुनहगार हूं.. हर युग में खेल ऐसा ही क्यों रचाया जाता.. करण से ही क्यों कवच मांगा जाता.. हरिश्चंद्र को ही क्यों घर से निकाला जाता.. कैसा यह दस्तूर प्रकृति का ? क्यों राजा बलि को पाताल में गाड़ा जाता.. आज फिर इतिहास खुद को दोहरा रहा.. कोई ईमानदारी का कर्जा अपनी जान दे कर चुका रहा.. बंद है महाराणा एक बड़ी गुफा में.. अंधेरे में अब खोने लगा है.. थक गया है चलता चलता.. अब सन्नाटे में सोने लगा है.. सांस सांस अब चुभने लगी है.. जीवन की ज्वाला बुझने लगी है.. कलम उसका भी अब कांप रहा.. प्रलय को वह है भाप रहा.. पंखे से अब रस्सी तन गई.. ईमानदारी की दवा आज फिर जहर बन गई.. हुआ आज अंधेरा है.. बादलों ने सूरज को घेरा है .. कौरवों

बेज़ुबान की आवाज

दे अगर भगवान जुबान इस बेज़ुबान को, पूछेगा वो कुछ सवाल हर एक इंसान को, कि वफ़ादारी निभाने में कसर कोई छोड़ी नहीं, पर उम्मीद तुमसे थी नहीं, कि इस कदर चुकाओगे तुम हमारे अहसान को, कि घर हमारे छीन लिए, पिंजरों में भी कैद किया, जंजीर भी बँधी है पैर से, बताओ हमने क्या जुर्म किया, सुबह से शाम तक हमने तुम्हारा साथ दिया, पर थी क्या दुश्मनी हमसे, जो खाने में बारूद दिया, समझ हम सके नहीं तुम्हारे इस व्यवहार को, खाने को कुछ देते नहीं,  तो  पत्थर क्यों मारते हो लाचार को, अब अपनी असलियत को तुम इंटरनेट से छिपाओगे, दया दिखाने के लिए स्टेटस भी तुम लगाओगे, पर इतिहास तुम्हारा है गवाह, पिछली घटनाओं की तरह इसको भी भूल जाओगे  आधुनिकता के काल में, क्यों खाने से प्रहार किया,  गलती तो बताओ उसकी, क्यों बच्चे सहित मार दिया, नासमझ वो माँ थी जिसने पहचाना नहीं इंसान को, क्यों स्वार्थ में डूबकर बेरहम तुम बनते हो, दे अगर भगवान जुबान इस बेज़ुबान को, पूछेगा वो यही सवाल हर एक इंसान को...                                                                 ~शज़र (Rajat Rajpurohit)

कोरोना में मजदूर

चला वो राही बनकर मंजिल उसकी अपना घर था,  फैली थी महामारी देश में पर वो अब  निडर था  पर ना नाँव थी पास उसके रास्ता एक समुंदर था,  सच कह रहा हूं , हाँ वो घर से इतना दूर था  बिन सावन बारिश के जैसे सरकार से बस ऐसी आस थी,  साधन से पहुंचे घर वो भी पर, वो कीमत ना उसके पास थी याद करता वो दिन राह में, आँगन में बैठाकर खाना खिलाती ज़ब बेटियां थी, थककर बैठता जलती पटरियों पर, खाने को बस सुखी रोटियाँ थी शाम ढली तो कुछ पल के लिए उसे शुकुन मिला, पर संभाले ज़ब पैर उसने, दर्द और कुछ खून मिला दिन भर चला वो और अब भी चलने को मजबूर था, लिखते भी काँप रही है कलम मेरी की वो इस देश का मजदूर था कुछ दूर चला वो पर शरीर  उसका बेसुध हो गया, सोचकर की ना आयी दिनभर में रेल, और पटरियों पर ही सो गया पर कायनात ने थी साजिश रची उसे बस उसके सोने का ही इंतजार था, ना संभल सका वो उससे जो ज़िन्दगी आखिरी वार था चीथड़े सब बिखर गए जो कभी उसकी अमानत थी रूह भी उसकी रो पड़ी देखकर की रोटियाँ अब भी सलामत थी...                                  ~शज़र (Rajat  Rajpurohit)

मैं नारी हूं / JP Tanwar

मैं नारी हूं, नित्य सी, स्वाभाविक सी, परछाई सी।    मैं हूं, तुम्हारे होने की सच्चाई सी ।।

तुफ़ान

जंगलो मैं है घर तेरा, फिर अंधेरे से क्यों डर गया . उठ हनुमान पहचान खुद को, यह जामवंत तुझे कह रहा..

तालाब का दुख

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पुराना तालाब आज रो रहा था l इतने दिनों से शांत था, फिर अब क्यों बोल रहा था ll जाने उसको थी क्या पड़ी, जो घाव दिल के खोल रहा था l बोला,"क्यों आए हो, परवाह तो तुमको है नहीं l किस किस्म के लोग हो तुम? क्यूँ कोई तुम्हें समझाता नहीं ll" मैं बोला, "बात क्या है, बता तो दो l किस चीज से हो खफा, जता तो दो ll बोला,"गांव में अकाल पड़ा था भारी l पानी की हुई थी लाचारी ll लोगों ने की पलायन की तैयारी,तो ठाकुर ने फिर यह बात विचारी l एक तालाब बनाने की दी जिम्मेदारी l और काम पर लग गए थे सब नर-नारी ll कुँई तालाब में तीन बनाई l पानी फिर भी नहीं दिया दिखाई ll निराश लोग अब होने लगे थे l धीरज अपना खोने लगे थे ll सब्र मेरा फिर टूट गया l दिल का दरिया फूट गया ll गांव में खुशी की लहर दौड़ आई l सबने उस दिन दिवाली मनाई ll और एक संदेश दिया मेरे भाई l पानी के लिए ना कोई करे लड़ाई ll क्या तुम्हें बताऊं मैं बच्चे व्यथा मेरी पुरानी है ll हो गया हूं अब मैं बूढ़ा अनसुनी मेरी कहानी है l हूँ मैं मेला सा सरोवर गंदा मेरा पानी है ll" मेरी है बस यही खता l किस बात की मिल रही है मुझे सजा? तो मैंने ऐस

वो लौट आयी

खामोश राहों पर इंतज़ार अब खत्म हुआ यह हवा आज उसका पैगाम लायी है l दिल की सूखी जमीन पर वो पहली बारिश की तरह फिर लौट आयी हैll तुम्हारी गैरमौजूदगी में बस तुम्हारे खत और तुम्हारी यादों का ही सहारा थाl अक्सर मै पूछता खुद से ही की वो शख्स क्यों दूर चला गया जो कभी हमारा थाll बंद कमरों की चार दीवारी में हर पल तेरा ही नाम गूंजता थाl तन्हाई की चादर लपेटे हुए दीवारों से ही तेरा हाल पूछता थाll अनजान था जिससे तेरी कमी ने मुझे उसी  चाहत से रूबरू कराया हैl हँसना मुनासिफ तो नहीं था पर तेरे जाने के गम को मैंने मेरी हँसी के पीछे छुपाया हैll आजा फिर थामा है हाथ उसने और छोड़ के ना जाने की कसम खायी हैl पर अरसो  बाद वो अँधेरे में रोशनी की तरह आज फिर वो लौट आयी हैll                                         ~ Rajat Rajpurohit

बारिश

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यह बारिश जरूर तेरे शहर से होकर आयी है तभी यह हवाये तेरी महक साथ लायी है बारिश को देखकर तुम दौड़ कर खिड़की पे आयी होंगी ऐसे अचानक बदलते मौसम को देख के तुम्हे मेरी याद भी आयी होंगी और तुम्हे जरूर मेरा स्पर्श महसूस हुआ होगा ज़ब तुमने बारिश की बूंदो को छुआ होगा एक पल के लिए तेरा वो चेहरा आज भी दिखता है जैसे बिजली की रोशनी से पल भर आसमान दिखता है आज इस बारिश ने दिल की राख में फिर आग लगा दी मिट्टी की इस सौंदी खुशबु ने आज फिर तेरी याद दिला दी...                                         ~  Rajat Rajpurohit Image source- Sandeep

एक तरफा इश्क़

कभी कभी सोचता हु की बताऊ उसे की कितनी है मोहब्बत तुमसे, चाहत से रूबरू कराऊं और बताऊ कैसे जुड़े है मेरे जज्बात तुमसे, बताऊ उसे की कैसे स्कूल के गेट पर एक झलक के लिए घंटो इंतज़ार करता था, कैसे तुम्हारी निगाहों से बचता था फिरता था और सामने आने से डरता था कुछ राज बताऊ की कैसे उसे बस में उसकी पसंदीदा सीट खाली मिलती थी और कैसे उसकी खोयी हुयी हर चीज उसे कितनी आसानी से मिलती थी कैसे अचानक उसके सामने आ जाने से मेरी खामोश नज़रे झुक जाती थी, और कैसे वो हर जगह  हर पल मुझे हमेशा अपने आस पास पाती थी कैसे हमेशा उसे अपने जन्मदिन पर हमेशा एक अजनबी तोहफा मिलता था, और कैसे बताऊ उसे की मेरे फ़ोन का लॉक हमेशा उसके नाम से खुलता था कैसे बताऊ उसे की उसकी डांस प्रैक्टिस मैं हमेशा छुप के देखता था और कैसे गुलज़ार की लाइने चुराकर तुम्हारे लिए कविताए लिखता था और कैसे बताऊ तुझे की मेरी इन नज़रों को तुम्हारे दीदार की कितनी फिक्र है, और पढ़ाऊ तुम्हे वो हर एक कविता जिसकी हर लाइन में मेरे एक तरफा प्यार का जिक्र है                                  ~  Rajat Rajpurohit

तेरी याद

वो राहे जो शहर से दूर उस सुनसान सड़क पर जाती है... आज भी इन सड़को की खामोशी तेरी याद दिलाती है... वही सड़क पर पेड़ के नीचे तेरा झुमका क्या पुराना मिल गया... आज अरसो बाद मेरे कलम को फिर से लिखने का बहाना मिल गया... वो काली सड़को पे हमारी मुलाकातों के सफ़ेद निशान आज भी है... भले ही तोड़ा हो दिल तुमने पर इस टूटे दिल में तेरी चाहत आज भी है... इस तरह समाये हो मुझमें की मेरी कलम की स्याही की आखिरी बूंद के जिक्र में तुम हो... ओस की बूंदो में डूबी काफ़ी लम्बी है यह रात पर, इस रात की सुबह तुम हो...                                                 ~  Rajat Rajpurohit   

ऐ ज़िन्दगी

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अपनों ने ही अहसानो तले दबाया है... ऐ ज़िन्दगी आज फिर तूने रुलाया है... इन आँसुओ को हमने हर शख्स से छुपाया है... दुश्मन के रूप में हमने ज़िन्दगी को पाया है... दुश्मनी का बदला भी इसने इस कदर लिया है... मरहम लगे ज़ख्म पर इसने फिर ज़ख्म दिया है... मुझसे जीत मेरी छीनकर इसने मुझे हराया है... ऐ ज़िन्दगी आज फिर तूने रुलाया है... गलतफहमी है तेरी तुझसे हारकर बिखर जाऊँगा मैं... इंतजार करना तुझसे लड़ने फिर आऊगा मैं... हैं काँटों से भरा तेरा सफर पर इसे पूरा जरूर कर लेंगे... याद रखना ऐ ज़िन्दगी इन आंसूओ का बदला हम हंसकर लेंगे...                                         ~  Rajat Rajpurohit Video Source- YouTube    "The last page of notebook"

हां मुझे एक रास्ता मिला है

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दूर तलक अंधियारे को चीरता हुआ, क्षितिज से सूरज निकला है l हां मुझे एक रास्ता मिला है l हां मुझे एक रास्ता मिला है ll भीड़-भाड़ भरी इस दुनिया में, मैं अक्सर भटक जाता हूं l भूल जाता हूं मंजिल इन तंग होती गलियों चौबारो में l डर जाता हूँ पल-पल स्वरूप बदलते इन मील के पत्थरों से l किसी अनजान मोड़ पर रोशनी को नुमायाँ करता एक दीया जला हैl हां, मुझे एक रास्ता मिला है ll कभी आ जाता है अकाल, गला सूखने लगता है l जमीन बंजर सी हो जाती है l पेड़ सूख जाते हैं और मौसम पतझड़ सा हो जाता है l उन्हीं पत्तों की ढेरी में, एक फूल खिला है l हां मुझे एक रास्ता मिला है l हां, मुझे एक रास्ता मिला है ll               ~राही ( Sandeep JR Bhati ) Image Source- Sandeep

मैं आज में होना चाहता हूँ

बिन मंजिल का एक रास्ता होना चाहता हूँ l ठहरा हुआ सा एक दरिया होना चाहता हूँ l बिना रिश्ते-रिवाजों की एक जिंदगी होना चाहता हूँ l पहाड़ों से गिरते झरने में, मैं खोना चाहता हूँ l मैं आज में होना चाहता हूँ ll अब मैं खुद को राशन की कतारों में खड़ा पाता हूँ l अपने खेतों से बिछड़ने की सजा मैं पाता हूँ l इन महंगे बाजारों से जो कुछ भी खरीद के लाता हूँ l अपने परिवार में बांटने में भी शर्माता हूँ ll पैनी-पैनी जोड़ कर मैं घर अपना बनाता हूँ l फिर रोजगार की तलाश में, परिवार छोड़ चला आता हूँ l है भीड़ बहुत इन गलियों में, रास्तों में, चौबारो में, तेज चलने की इच्छा से, मैं रास्ता तक भूल जाता हूँ l है शौक नहीं मुझे प्रसिद्धि का, थोड़े में खुशी मनाता हूँ l घर को मजबूत बनाने को, मैं नींव की ईंट बन जाता हूँ ll                                          ~   प्रदीप भाटी

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