"मैं आपका गुनहगार हूं"

एक कविता 🙏विष्णुदत्त विश्नोई जी 🙏 के लिए
"मैं आपका गुनहगार हूं"
राजनीति के आगे मैं लाचार हूं..
भ्रष्टाचार से मरते युग में, मैं दाधीच का कंकाल हूं..
बेसुरे संगीत में, मैं सुरीली ताल हूं ..
भूख से मरते शेर की तरह मैं बेहाल हूं..
मैं पत्थरों में खोया एक लाल हूं ..
हां, मैं अब मरने के लिए तैयार हूं..
मैं राजनीति के आगे लाचार हूं..
मैं आपका गुनहगार हूं..

हर युग में खेल ऐसा ही क्यों रचाया जाता..
करण से ही क्यों कवच मांगा जाता..
हरिश्चंद्र को ही क्यों घर से निकाला जाता..
कैसा यह दस्तूर प्रकृति का ?
क्यों राजा बलि को पाताल में गाड़ा जाता..
आज फिर इतिहास खुद को दोहरा रहा..
कोई ईमानदारी का कर्जा अपनी जान दे कर चुका रहा..

बंद है महाराणा एक बड़ी गुफा में..
अंधेरे में अब खोने लगा है..
थक गया है चलता चलता..
अब सन्नाटे में सोने लगा है..
सांस सांस अब चुभने लगी है..
जीवन की ज्वाला बुझने लगी है..
कलम उसका भी अब कांप रहा..
प्रलय को वह है भाप रहा..
पंखे से अब रस्सी तन गई..
ईमानदारी की दवा आज फिर जहर बन गई..

हुआ आज अंधेरा है..
बादलों ने सूरज को घेरा है ..
कौरवों की सेना अक्षुणी में..
अभिमन्यु आज अकेला है ..
याद करके भगत सिंह को, जीवन का मोह है अब भूल गया ..
बनके सुभाष आजाद उसने स्वैच्छिक मौत को कबूल किया..

                                       ~Sandeep JR Bhati

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