मैं आज में होना चाहता हूँ
बिन मंजिल का एक रास्ता होना चाहता हूँ l
ठहरा हुआ सा एक दरिया होना चाहता हूँ l
बिना रिश्ते-रिवाजों की एक जिंदगी होना चाहता हूँ l
पहाड़ों से गिरते झरने में, मैं खोना चाहता हूँ l
मैं आज में होना चाहता हूँ ll
अब मैं खुद को राशन की कतारों में खड़ा पाता हूँ l
अपने खेतों से बिछड़ने की सजा मैं पाता हूँ l
इन महंगे बाजारों से जो कुछ भी खरीद के लाता हूँ l
अपने परिवार में बांटने में भी शर्माता हूँ ll
पैनी-पैनी जोड़ कर मैं घर अपना बनाता हूँ l
फिर रोजगार की तलाश में, परिवार छोड़ चला आता हूँ l
है भीड़ बहुत इन गलियों में, रास्तों में, चौबारो में,
तेज चलने की इच्छा से, मैं रास्ता तक भूल जाता हूँ l
है शौक नहीं मुझे प्रसिद्धि का, थोड़े में खुशी मनाता हूँ l
घर को मजबूत बनाने को, मैं नींव की ईंट बन जाता हूँ ll
~ प्रदीप भाटी
ठहरा हुआ सा एक दरिया होना चाहता हूँ l
बिना रिश्ते-रिवाजों की एक जिंदगी होना चाहता हूँ l
पहाड़ों से गिरते झरने में, मैं खोना चाहता हूँ l
मैं आज में होना चाहता हूँ ll
अब मैं खुद को राशन की कतारों में खड़ा पाता हूँ l
अपने खेतों से बिछड़ने की सजा मैं पाता हूँ l
इन महंगे बाजारों से जो कुछ भी खरीद के लाता हूँ l
अपने परिवार में बांटने में भी शर्माता हूँ ll
पैनी-पैनी जोड़ कर मैं घर अपना बनाता हूँ l
फिर रोजगार की तलाश में, परिवार छोड़ चला आता हूँ l
है भीड़ बहुत इन गलियों में, रास्तों में, चौबारो में,
तेज चलने की इच्छा से, मैं रास्ता तक भूल जाता हूँ l
है शौक नहीं मुझे प्रसिद्धि का, थोड़े में खुशी मनाता हूँ l
घर को मजबूत बनाने को, मैं नींव की ईंट बन जाता हूँ ll
~ प्रदीप भाटी